तत्वम् पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ।।
अर्थ- हे प्रभु! सत्य का मुख सोने के समान आवरण से ढका हुआ है, सच्चे धर्म की प्राप्ति के लिए उस आवरण को हटा दें।
व्याख्या- प्रस्तुत श्लोक ‘ईशावास्य उपनिषद’ से संकलित एवं मंगलम् पथ से उद्धृत है। सत्य के बारे में कहा गया है कि सांसारिक मोह-माया के कारण विद्वान भी उस सत्य को प्राप्त नहीं कर पाते, क्योंकि वह सत्य सांसारिक चकाचौंध में इस तरह ढक जाता है कि मनुष्य जीवन भर व्यर्थ ही भटकता रहता है। इसलिए भगवान से प्रार्थना की गई है कि हे प्रभु! अपने मन से उस भ्रम को दूर करें ताकि आप परमपिता परमेश्वर को प्राप्त कर सकें।